भारत-रूस संबंधों का नवीन चरण: विश्व व्यवस्था में स्थिरता और सामरिक विश्वास की निरंतरता
भारत और रूस के बीच विशेष सामरिक साझेदारी अब एक नए दौर में प्रवेश कर रही है। 5 दिसंबर 2025 को दिल्ली में आयोजित 23वें वार्षिक शिखर सम्मेलन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि दोनों देश न केवल अपने ऐतिहासिक संबंधों को पुनर्स्थापित कर रहे हैं, बल्कि बदलते वैश्विक परिदृश्य में इन्हें अधिक प्रासंगिक, सुदृढ़ और बहुआयामी रूप दे रहे हैं। यह साझेदारी परस्पर विश्वास, राष्ट्रीय हितों के सम्मान और वैश्विक स्थिरता के प्रति साझा प्रतिबद्धता की आधारशिला पर टिकी है।
दीर्घकालिक सामरिक विश्वास की पुनर्पुष्टि:
वर्ष 2000 में स्थापित सामरिक साझेदारी की 25वीं वर्षगांठ ने इस रिश्ते की निरंतरता को विशेष महत्व दिया है। शिखर वार्ता में यह रेखांकित किया गया कि भारत-रूस संबंध जटिल और अनिश्चित भू-राजनीतिक परिस्थितियों के बीच भी स्थिर बने हुए हैं। दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व ने इसे वैश्विक शांति और संतुलन का एक आवश्यक स्तंभ माना है, जो समान और अविभाज्य सुरक्षा के सिद्धांत पर आधारित है।
विस्तृत सहयोग का नया क्षितिज:
दोनों देशों के बीच सहयोग का दायरा राजनीतिक, सुरक्षा, व्यापार, ऊर्जा, अंतरिक्ष, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, शिक्षा, संस्कृति और मानवीय विनिमय तक विस्तारित हो चुका है। हाल के वर्षों में अंतर-सरकारी आयोग की सक्रिय बैठकों, मंत्रिस्तरीय यात्राओं और बहुपक्षीय मंचों पर संवाद ने इस साझेदारी को नई ऊर्जा दी है। यकातेरिनबुर्ग और कज़ान में भारतीय वाणिज्य दूतावासों की स्थापना को भी क्षेत्रीय सहयोग के लिए महत्वपूर्ण कदम माना गया है।
भारत-रूस आर्थिक परिदृश्य: स्थिरता और विस्तार की दिशा में
शिखर सम्मेलन में आर्थिक सहयोग को 2030 तक रणनीतिक रूप से विस्तृत करने के लिए ‘प्रोग्राम 2030’ को अपनाया गया है। द्विपक्षीय व्यापार को संतुलित और टिकाऊ बनाने, उच्च प्रौद्योगिकी वाले क्षेत्रों में निवेश और औद्योगिक साझेदारियों को बढ़ावा देने पर विशेष बल दिया गया है। दोनों पक्ष मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत को आगे बढ़ा रहे हैं और व्यापार में राष्ट्रीय मुद्राओं के प्रयोग के लिए भुगतान प्रणालियों को एकीकृत करने की दिशा में भी कार्यरत हैं।
लॉजिस्टिक्स, बीमा, आपूर्ति श्रृंखलाओं, कृषि-उर्वरक क्षेत्र, खनिज संसाधनों और ऊर्जा स्रोतों में सहयोग को व्यापार लक्ष्य 2030 तक 100 बिलियन डॉलर करने की आधारशिला माना गया है। विशेष रूप से ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में रूस भारत का एक महत्वपूर्ण साझेदार बना हुआ है।
ऊर्जा, परिवहन और आर्कटिक सहयोग
ऊर्जा क्षेत्र सदैव से भारत-रूस साझेदारी का केंद्रीय आधार रहा है। तेल, गैस, परिशोधन, पेट्रोकेमिकल तकनीक, कोयला गैसीकरण से लेकर आणविक ऊर्जा तक दोनों देश आपसी सहयोग से आगे बढ़ रहे हैं। कुडनकुलम परमाणु परियोजना में प्रगति को संतोषजनक बताया गया है, साथ ही भारत में दूसरे परमाणु संयंत्र के लिए चर्चाओं को आगे बढ़ाने पर सहमति बनी है।
परिवहन और संपर्क के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी ), चेन्नई-व्लादिवोस्तोक समुद्री मार्ग और नॉर्दर्न सी रूट को भविष्य के लिए रणनीतिक संपत्ति के रूप में देखा जा रहा है। रूसी फार ईस्ट और आर्कटिक क्षेत्रों में भारत की भागीदारी को भी नई गति मिल रही है।
रक्षा और प्रौद्योगिकी: आत्मनिर्भरता की दिशा में सहयोग
रक्षा सहयोग में पारंपरिक आपूर्ति-आधारित मॉडल अब सह-विकास, सह-उत्पादन और उन्नत सैन्य तकनीकों के संयुक्त अनुसंधान की रूपरेखा में बदल रहा है। ‘मेक-इन-इंडिया’ के अंतर्गत स्पेयर पार्ट्स और उपकरणों के निर्माण तथा तीसरे देशों को निर्यात की संभावनाएँ रक्षा सहयोग को और मजबूत करेंगी। नियमित सैन्य अभ्यास ‘इंद्र’ और उच्च स्तरीय सैन्य संवादों ने दोनों देशों की रक्षा समन्वय क्षमता को और प्रभावी बनाया है।
विज्ञान-प्रौद्योगिकी, शिक्षा और नवोन्मेष:
भारत और रूस उभरती प्रौद्योगिकियों, डिजिटल सुरक्षा, महत्वपूर्ण खनिजों, स्टार्ट-अप सहयोग और नवाचार को बढ़ावा देने के लिए रोडमैप तैयार कर रहे हैं। उच्च शिक्षा, अनुसंधान संस्थानों के बीच विनिमय और संयुक्त परियोजनाएँ ज्ञान-आधारित साझेदारी के विस्तार की दिशा में महत्वपूर्ण पहल हैं।
संस्कृति, पर्यटन और जन-से-जन संबंध
दोनों देशों ने सांस्कृतिक उत्सवों, पुस्तकों, फिल्मों और पर्यटन को बढ़ावा देने पर सहमति जताई है। वीज़ा प्रक्रियाओं की सरलता और पारस्परिक सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ लोगों के बीच निकटता को बढ़ाती रहेंगी। थिंक-टैंक और शैक्षणिक संवादों को भी द्विपक्षीय समझ को गहरा करने में महत्वपूर्ण माना गया है।
बहुपक्षीय मंचों पर समन्वय:
संयुक्त राष्ट्र, जी20, ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन में सहयोग भारत-रूस संबंधों की वैश्विक प्रासंगिकता को दर्शाता है। रूस द्वारा भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के समर्थन ने वैश्विक भू-राजनीति में भारत की उभरती भूमिका को सुदृढ़ किया है। दोनों देशों ने आतंकवाद के विरुद्ध शून्य-सहनशीलता की नीति, उभरती प्रौद्योगिकियों के दुरुपयोग को रोकने और वैश्विक दक्षिण की आवाज उठाने पर विशेष बल दिया है।
निष्कर्ष:
23वें भारत-रूस शिखर सम्मेलन ने स्पष्ट कर दिया कि यह साझेदारी केवल इतिहास पर आधारित नहीं है, बल्कि भविष्य की अनिवार्यताओं द्वारा भी निर्देशित है। बदलती विश्व व्यवस्था, नई तकनीकी संरचनाएँ, बहुध्रुवीयता और वैश्विक दक्षिण के उदय के संदर्भ में भारत-रूस संबंध स्थिरता का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बने हुए हैं। विश्वास, संतुलन और साझा हितों पर आधारित यह संबंध 21वीं सदी की वैश्विक राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभाता रहेगा।
लेखक परिचय-
डा० ललित जोशी , सहायक आचार्य , (राजनीति विज्ञान) , राजकीय महाविद्यालय तलवाड़ी चमोली
गौरव उपाध्याय, नमन जोशी
शोधार्थी ( राजनीति विज्ञान) , कुमाऊं विश्वविद्यालय- नैनीताल




