✍️ मनमोहन भट्ट, उत्तरकाशी।
खबर उत्तरकाशी से है जहां पर देश की पर्वतारोहण शिक्षा का गौरव कहलाने वाला नेहरू पर्वतारोहण संस्थान (Nehru Institute of Mountaineering – NIM) आज गंभीर आरोपों के घेरे में है। पारदर्शिता और जवाबदेही के अभाव में यह प्रतिष्ठित संस्थान अब भ्रष्टाचार, मनमानी और प्रशासनिक लापरवाही का प्रतीक बन गया है।
स्थानीय सूत्रों और संस्थान के कर्मचारियों के अनुसार, सरकारी धन के दुरुपयोग, बिना निविदा के निर्माण कार्य, कागजी कर्मचारियों की नियुक्ति और राज्य सरकार के आदेशों की अवहेलना जैसी कई अनियमितताएँ लंबे समय से जारी हैं।

⚠️ बिना निविदा के निर्माण और नियमों की अनदेखी:
जानकारी के अनुसार, संस्थान परिसर में ‘मांडा’ नामक तीन मंजिला इमारत बिना किसी निविदा प्रक्रिया या स्वीकृत नक्शे के तैयार की गई है। यह न केवल लोक निर्माण विभाग के वित्तीय नियमों का उल्लंघन है, बल्कि यह दर्शाता है कि संस्थान के भीतर जवाबदेही नाम की कोई व्यवस्था नहीं बची है।
कथित तौर पर इन निर्माण कार्यों की जानकारी खेल निदेशालय तक भी नहीं पहुँचाई गई, जिससे स्पष्ट है कि पारदर्शिता की पूरी प्रक्रिया दरकिनार की गई है।
🌋 आपदा ग्रस्त क्षेत्र में अनियंत्रित निर्माण:
उत्तरकाशी जैसे आपदा-संवेदनशील क्षेत्र में निर्माण कार्यों के लिए विशेष अनुमति और तकनीकी सतर्कता आवश्यक है। इसके बावजूद, संस्थान परिसर में अब तक पाँच नई इमारतें बिना किसी पर्यावरणीय स्वीकृति के खड़ी कर दी गई हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह न केवल प्रशासनिक लापरवाही है, बल्कि आपदा प्रबंधन कानूनों की खुली अवहेलना भी है।
💰 कागजी हेराफेरी और काल्पनिक कर्मचारियों का खेल:
संस्थान के भीतर कथित रूप से एक “कागजी कर्मचारी” नियुक्त किया गया है — जिसका न तो कोई आधिकारिक रिकॉर्ड है, न ही कोई कार्य विवरण। इसके बावजूद, उसे हर माह लगभग ₹60,000 वेतन दिया जा रहा है और सरकारी आवास भी उपलब्ध कराया गया है।
सूत्र बताते हैं कि एक वर्ष में इसी माध्यम से लाखों रुपये निजी खातों में ट्रांसफर किए गए, जो गंभीर वित्तीय अनियमितता का मामला है।
🏛️ प्रशासनिक शिथिलता और मौन नेतृत्व:
वर्तमान में स्वास्थ्य लाभ पर चल रहे कर्नल अंशुमान भदौरिया के कार्यकाल में कई अनियमितताएँ उजागर हुईं, जबकि कर्नल हेमचंद्र को इन मामलों की जानकारी होने के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
यह दर्शाता है कि संस्थान में अनुशासन और जवाबदेही का पूर्ण अभाव है।
🚫 राज्य सरकार के आदेशों की अनदेखी:
संस्थान के एक रजिस्ट्रार ने कथित रूप से कहा कि —
> “राज्य सरकार के आदेशों का पालन संस्थान में नहीं किया जा सकता।”
यह बयान न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि केंद्र और राज्य के बीच समन्वयहीनता का खामियाजा सरकारी धन और संस्थान की साख को भुगतना पड़ रहा है।

👥 कर्मचारियों का शोषण और संग्रहालय प्रबंधन में अनियमितता:
संस्थान के छोटे कर्मचारियों में असंतोष चरम पर है। उन्हें उनके मूल अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है।
सूत्रों के अनुसार, संस्थान के संग्रहालय का संचालन जिस व्यक्ति को सौंपा गया है, उसने आज तक किसी पर्यटक को कोई जानकारी नहीं दी। वह स्वयं को “रजिस्ट्रार” और “सूचना अधिकारी” बताकर दोहरी जिम्मेदारियों के लिए वेतन प्राप्त कर रहा है।
वहीं संग्रहालय का वास्तविक संचालन एक दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी द्वारा किया जा रहा है, जबकि हर आगंतुक से प्रवेश शुल्क लिया जाता है — जो गंभीर वित्तीय गड़बड़ी का संकेत देता है।
🧭 संस्थान की गरिमा बचाने का समय:
नेहरू पर्वतारोहण संस्थान देश की पर्वतारोहण शिक्षा का प्रतीक माना जाता है। लेकिन यदि यही संस्थान भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और जवाबदेही की कमी का गढ़ बन जाए, तो यह न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे देश के लिए शर्मनाक है।
अब समय आ गया है कि राज्य सरकार, खेल निदेशालय और केंद्र सरकार इस पूरे मामले की स्वतंत्र जांच कराएं, ताकि NIM की साख और पारदर्शिता पुनः स्थापित की जा सके।




