राज्य आंदोलन के ‘फील्ड मार्शल’ दिवाकर भट्ट नहीं रहे
उत्तराखंड ने खो दिया अपना संघर्ष का सब से चमकता चेहरा
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के नेता और आंदोलनकारियों के बीच ‘फील्ड मार्शल’ के नाम से पहचाने जाने वाले दिवाकर भट्ट का निधन हो गया। उनके निधन के साथ उत्तराखंड ने वो आवाज़ खो दी जिसने पहाड़ की आत्मा को दिल्ली की गलियों तक पहुंचाया था।
दिवाकर भट्ट सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि वह जोश, हिम्मत और आंदोलन की आग थे जिसने पहाड़ की जनता को एक झंडे के तले जोड़ा था
वे हर मोर्चे पर सबसे आगे रहने वाले नेता थे,
लाठियां, गिरफ्तारियां, ठंड, भूख—कुछ भी उन्हें जनता के मुद्दों से नहीं रोक पाया,
आंदोलन को दिशा देने वाले रणनीतिकार और भीड़ को जोश से भर देने वाले वक्ता—दिवाकर भट्ट दोनों भूमिकाओं में अद्वितीय थे।
उन्होंने युवाओं, महिलाओं, किसानों, कर्मचारियों—हर वर्ग को एक सुर में “उत्तराखंड राज्य” की मांग के लिए खड़ा किया। यही वजह थी कि आंदोलन के दिनों में उनका नाम सुनते ही भीड़ खुद चल पड़ती थी।
आंदोलनकारियों ने उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि दी, क्योंकि—
जब मोर्चा मुश्किल होता था, दिवाकर भट्ट सबसे आगे होते थे।
जब पुलिस बल आता था, वे पीछे हटने नहीं देते थे।
जब रणनीति बिगड़ती थी, वे नई दिशा तय करते थे।
हजारों की भीड़ का नेतृत्व जिस आत्मविश्वास से उन्होंने किया, वैसा साहस बहुत कम नेताओं में देखा गया।
उनकी नेतृत्व शैली बिलकुल फील्ड पर उतरकर युद्ध लड़ने वाले कमांडर जैसी थी—
यही वजह है कि आंदोलनकारियों ने उन्हें सम्मान से “फील्ड मार्शल” कहना शुरू किया, और यह नाम उनकी पहचान बन गया।
आंदोलन के बाद दिवाकर भट्ट राजनीति का बड़ा चेहरा बने।
वे अपनी स्पष्टवादिता, तेज़ टिप्पणी और पहाड़ के सवालों पर अडिग रहने के लिए जाने जाते थे।
भीड़ में उनकी पकड़, ग्रामीण क्षेत्रों में सम्मान और युवाओं के बीच प्रभाव आज भी कम नहीं था।
आज सिर्फ एक नेता नहीं गया,
बल्कि उत्तराखंड आंदोलन की जीवंत याद,
एक जोशीला कमांडर,
और पहाड़ का सबसे बेबाक आवाज़ शांत हो गई।
आंदोलनकारी पीढ़ी कह रही है—
“दिवाकर भट्ट के बिना आंदोलन का इतिहास अधूरा है।”




