✍️ मनमोहन भट्ट, उत्तरकाशी।
राष्ट्रीय अन्धता निवारण कार्यक्रम के अन्तर्गत स्वास्थ्य विभाग द्वारा जनपद में 40वाँ नेत्रदान पखवाड़ा मनाया गया। डाॅ0 बी0एस0 रावत मुख्य चिकित्सा अधिकारी द्वारा नेत्रदान के महत्व के बारे में जानकारी प्रदान करते हुये बताया गया कि किसी भी उम्र का कोई भी व्यक्ति मृत्यु के बाद नेत्रदान की प्रतिज्ञा कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति चश्मा पहनता हो, मौतियाबिन्द का रोगी हो या उसकी आंख का सफल ऑपरेशन हो चुका हो तो भी वह व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है। दान किये गये नेत्र कभी खरीदे या बेचे नही जाते हैं ।मुख्य चिकित्सा अधिकारी के द्वारा बताया गया कि विकास खण्ड स्तर पर गांव-गांव में दृष्टिमितिज्ञ/ए0एन0एम0/आशा कार्यकत्रि द्वारा पम्पलेट, बैनर के माध्यम से भी प्रचार प्रसार कराया जा रहा है ताकि आम जनमानस में नेत्रदान के प्रति जन जागरूकता लायी जा सके। इसी कड़ी में बुधवार को राजकीय कन्या इंटर कालेज उत्तरकाशी में नेत्रदान महादान विषय पर बच्चों में जनजागरूकता हेतु क्विज प्रतियोगिता आयोजित की गई जिसमें प्रथम, द्वितीय एवं तृत्तीय आने वाले प्रतिभागियों को पुरस्कृत भी किया गया।
इस अवसर पर डाॅ0 बिरेन्द्र सिंह पांगती, अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी के द्वारा बच्चों को नेत्रदान के महत्व को बताते हुये जानकारी दी गयी कि नेत्रदान से बढ़कर कोई दान नही है, एक व्यक्ति के नेत्रदान करने से 2 व्यक्तियों के जीवन में उजाला आ सकता है। यह अवधारणा निराधार है कि नेत्रदान करने से व्यक्ति अगने जन्म में अन्धा पैदा होता है यह सिर्फ अन्धविश्वास है। डाॅ आस्था रावत, नेत्र शल्यक जिला चिकित्सालय उत्तरकाशी द्वारा बताया गया कि आंख निकालने में केवल 10 से 15 मिनट ही लगते है तथा चेहरे पर कोई भी निशाने या विकृति नहीं रहती है। आंख मृत्यु के बाद 6 घंटे के भीतर निकालनी होती है एवं दान स्वरूप प्राप्त हुई आंखे जब नेत्र बैंक में पहुंचती हैं तो उनकी जांच की जाती है उन्हें संशोधित किया जाता है तथा 36 घण्टे के अंदर खराब काॅर्निया वाले व्यक्ति का प्रत्यारोपण कर ऑपरेशन कर दिया जाता है। नेत्र दान करने हेतु प्रतिज्ञा फाॅर्म जिला चिकित्सालय एवं प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र/सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में उपलब्ध हैं। नेत्र शल्यक द्वारा नेत्रदान के विषय में बच्चों को विस्तारपूर्वक जानकारी प्रदान की गई।