✍️पवन रावत,भवाली/नैनीताल।
नैनीताल। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने भवाली थाना पुलिस द्वारा दर्ज किए गए एक विवादित मामले को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने साफ कहा कि कॉन्स्टेबल से मारपीट और तोड़फोड़ के आरोप तथ्यों और सबूतों से साबित नहीं हो पा रहे।
23 जून 2023 की रात भवाली थाना पुलिस ने देवेन्द्र मेहरा और उसके साथी पारस पर गंभीर आरोप लगाए। पुलिस का दावा था कि दोनों ने थाने में घुसकर हंगामा किया, कॉन्स्टेबल से मारपीट की और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया। इसी आधार पर दोनों पर आईपीसी की धारा 332, 353, 504 और 506 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पुलिस की कहानी में कई बड़े झोल पाए घटना शाम के समय की बताई गई, लेकिन एफआईआर आधी रात के बाद दर्ज की गई। अगर थाने में हमला हुआ था, तो आरोपियों को मौके पर ही गिरफ्तार क्यों नहीं किया गया? सभी गवाह सिर्फ पुलिसकर्मी क्यों हैं? कोई स्वतंत्र गवाह क्यों नहीं है?
कोर्ट ने पूछा कि गंभीर चोटों से जूझ रहा व्यक्ति थाने में तोड़फोड़ और मारपीट कैसे कर सकता है?
मेडिकल रिपोर्ट में कथित गंभीर चोटों का कोई ज़िक्र नहीं था।
उसी रात देवेन्द्र मेहरा के भाई ने भी एक अलग एफआईआर दर्ज कराई थी। इसमें कहा गया कि देवेंद्र एक बार (Bar) में झगड़े के दौरान घायल हो गया था। रात करीब 8:30 बजे उसे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) भवाली में भर्ती कराया गया।
बाद में हालत गंभीर होने पर उसे सुशीला तिवारी अस्पताल, हल्द्वानी रेफ़र कर दिया गया।
इन सभी विरोधाभासों और सबूतों की कमी के चलते उच्च न्यायालय ने पूरा केस रद्द कर दिया।
हाईकोर्ट का यह फैसला पुलिस की कार्यशैली और जांच पर गंभीर सवाल खड़े करता है। अदालत ने साफ संदेश दिया है कि बिना पुख्ता सबूतों और सच्चाई के आधार पर किसी भी व्यक्ति को झूठे मुकदमे में नहीं फंसाया जा सकता।