
स्थान। नैनीताल
आपातकाल लागू करना लोकतंत्र को नष्ट करने के लिए भूकंप से कम नहीं था – उपराष्ट्रपति
रिपोर्ट। ललित जोशी।
नैनीताल। सरोवर नगरी पहुँचे भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने यहाँ डीएसबी कालेज के पूरे 50 वर्ष हो जाने पर सम्बोधित करते हुए कहाआपातकाल के दौरान देश की सर्वोच्च अदालत की भूमिका धूमिल हो गई, नौ उच्च न्यायालयों के फैसलों को पलट दिया गया।
उन्होंने कहाआज का युवा उस अंधकारमय कालखंड से अनभिज्ञ नहीं रह सकता ।
शैक्षणिक संस्थान विचार और नवाचार के स्वाभाविक, जैविक प्रयोगशाला हैं ।
इसी दौरान राज्यपाल गुरमीत सिंह ने कहा विश्वविद्यालयों का दायित्व युवाओं को केवल शिक्षित करना नहीं, बल्कि उन्हें प्रेरित, प्रशिक्षित और उत्तरदायी नागरिक के रूप में तैयार करना भी है।
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज कहा, “पचास वर्ष पहले, इसी दिन, विश्व का सबसे पुराना, सबसे बड़ा और अब सबसे जीवंत लोकतंत्र एक गंभीर संकट से गुज़रा।
यह संकट अप्रत्याशित था — जैसे कि लोकतंत्र को नष्ट कर देने वाला एक भूकंप। यह था आपातकाल का थोपना। वह रात अंधेरी थी, कैबिनेट को किनारे कर दिया गया था। उस समय की प्रधानमंत्री, जो उच्च न्यायालय के एक प्रतिकूल निर्णय का सामना कर रही थीं, ने पूरे राष्ट्र की उपेक्षा कर, व्यक्तिगत हित के लिए निर्णय लिया।
राष्ट्रपति ने संवैधानिक मूल्यों को कुचलते हुए आपातकाल की घोषणा पर हस्ताक्षर कर दिए। इसके बाद जो 21–22 महीनों का कालखंड आया, वह लोकतंत्र के लिए अत्यंत अशांत और अकल्पनीय था। यह हमारे लोकतंत्र का सबसे अंधकारमय काल था।”
कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल, उत्तराखंड में स्वर्ण जयंती समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में छात्रों और संकाय सदस्यों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, “एक लाख चालीस हजार लोगों को जेलों में डाल दिया गया।