
रिखणीखाल-
रिखणीखाल प्रखंड के अन्तर्गत ग्राम झर्त का तोक गाँव “चैरियूं ” मौलिक संसाधनों व सुविधाओं के अभाव के चलते वीरान व खंडहर में तब्दील हुआ।
जनपद पौड़ी गढ़वाल के परगना तल्ला सलाण, रिखणीखाल विकास खंड के मौजा झर्त में तोक गाँव, “चैरियूं” मूलभूत सुविधाओं के पर्याप्त न होने के चलते अब उजड़ कर वीरान व खंडहर में परिवर्तित हो गया है।
यह चैरियूं नामक गांव की स्थापना सन् 1914 ई0 में हुई थी,इससे पहले यह जगह सिर्फ खेती के प्रयोग के लिए थी।ये खेती की भूमि ग्राम झर्त के थोकदार गोविंद सिंह नेगी की हुआ करती थी।वे सिर्फ यहाँ थोड़े-बहुत खेती करते थे। उसके बाद अंग्रजी हुकुमत के दौरान रिखणीखाल के ही ग्राम नावेतल्ली के मोती सिंह रावत मालगुजार ने झर्त के गोविंद सिंह नेगी से खरीदी।तथा अपने 2 पुत्रों शेर सिंह रावत, इन्द्र सिंह रावत व भतीजा खुशहाल सिंह रावत के नाम पर रजिस्ट्री करवायी।सन 1914 से पहले यहाँ कोई आबादी व मानव नहीं था।एकमात्र उद्देश्य कृषि कार्य ही करना था।जब ये लोग नावेतल्ली से आये तो इन तीनों भाइयों ने मिलजुलकर यहां मकान व खेती करना आरम्भ किया।तथा अपनी आजीविका चलाने लगे।उस समय मोती सिंह रावत मालगुजार की आयु 64 वर्ष व उनके बड़े पुत्र शेर सिंह रावत 34 वर्ष के थे।धीरे धीरे साल दर साल मकान बनने लगे।यहाँ केवल 4-5 ,मकान ही थे लेकिन बहुत बड़े व सुन्दर थे।भूतल में इन्होनें मवेशियों के लिए गोशाला नुमा तथा प्रथम तल पर अपने व परिवारजनों के लिए बड़े बड़े कमरे बनाये। सब लोग सामुहिक रूप से रहते थे।चूल्हा चौका एक साथ होता था।सब मिलजुलकर खाना खाते थे।जंगली इलाका होने के बावजूद भी जंगली जानवरों का भय नहीं था।गाँव के आसपास बहुत बड़े बड़े सीढीनुमा खेत हुआ करते थे।हर प्रकार की फसलें पैदा करते थे।मंडुवा, गेंहू, दाल,सब्जी, तरकारी,तैडू आदि खूब होता था।पेयजल की आपूर्ति पर्याप्त मात्रा में है।गाँव से लगभग आधा किलोमीटर दूर जलाशय, डिग्गी बनी है अब तो जलाशय में घास-फूस जम गई है।यहाँ से तोक ज्वालाचौड भी पेयजल की सप्लाई पाइपलाइन जाती है।यहां की भूमि पथरीली व उपजाऊ है।खेतों में बरसात का पानी जमा नहीं होता है।यहाँ की भूमि का कुल क्षेत्रफल 8.222 ,हेक्टेयर व खसरा संख्या 1245 से 1545 तक हैं।
धीरे धीरे समय बदलता रहा लोग शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क आदि मौलिक संसाधनों व सुविधाओं के अभाव में मैदानी इलाके के गाँव झर्त आदि की ओर बढ़ते गये,तथा अब लगभग सन् 2001 से ये गाँव मानव विहीन व भवन खंडहर में परिवर्तित होकर धराशायी हो गये हैं। जो मकान थे उनके दीवारों के अवशेष पत्थर आदि ही दिखायी देते हैं। अब पूरे मकानों के चौक, चौबारे ,ऑगन, तिबारी ,खेत,खलिहान, फलदार पेड़, आम,कटहल,केला ,गींठी, तैडू, हिसाला,मेलू, किनगोडा, तिमला,लिसडू आदि सब धूमिल हो गया है।अब सिर्फ चारों तरफ झाड़ी ही झाड़ी व उसके बीच मकानों के दीवार के अवशेष ही दिखाई देते हैं।
अभी उसी गाँव के 3 नवयुवक अपनी पुरानी यादें ताजा करते हुए गाँव के बीच गये, तो वै वहाँ का नज़ारा व पुरानी बातों को स्मरण करते हुए भावुक हो गये।उस टीम में सुरेन्द्र सिंह रावत, असम राइफ़ल का हवलदार धनपाल सिंह रावत व अन्य थे।उन्होनें भावुक होकर अपनी याददाश्त ताजा की तथा दुखी मन से वहाँ से लौट आये।अब सन् 1914 से अभी छठी पीढ़ी चल रही है।जिन पूर्वजों ने इस गाँव की नींव रखी, वे सब अनपढ व अशिक्षित थे।सिर्फ दर्जा 2 ,पास शेर सिंह रावत ही थे।उनके पिता मोती सिंह रावत भी अनपढ ही थे।सन 1931 में मोती सिंह रावत का स्वर्गवास हो गया। वे अधिकांश समय इसी गाँव में बिताते थे।वे लम्बा मिरजयी कोट पहनते थे।गाँव में आने-जाने के लिए जंगल का रास्ता उपयोग होता था।दो ही रास्ते सुलभ थे,एक गाडियू से होकर दूसरा झर्त, ज्वालाचौड होकर।पूर्वजों ने यह जमीन सिर्फ अपने खाने,कमाने व आजीविका चलाने के लिए खरीदी।
पुराने गाँव नावेतल्ली से यहाँ आने का ये कारण था कि इनके पूर्वजों ने वहां अन्य गांवों से लोगों को बसाने का तथा साथ में रहने व दगडा करने के लिए लाये थे।पहले समय में लोग साथ-साथ रहना पसंद करते थे।ये भी कारण रहता था कि लोग अधिकांश विकट,ऊबड खाबड, पहाड़ी इलाके को घर बनाने के लिए चुनते थे।उस समय अंग्रेजी हुकुमत से भय खाते थे।दूसरा मैदानी इलाके में मच्छर, मलेरिया, हैजा चेचक, अन्य बीमारियों का खतरा बना रहता था।
समय बदलता गया, लोग बदलते गये, और अब चैरियू गाँव निर्जन, आबादविहीन, होकर विलुप्त हो गया है।सिर्फ बीती बातें ही रह गयी है।या फिर राजस्व अभिलेखों में दर्ज हमारी खाता खतौनी व खसरा नम्बर। जिससे हमारे बच्चे व भावी पीढ़ी अपने रोजगार पाने के लिए स्थायी निवास प्रमाणपत्र आदि बना सकते हैं। अगर ये भी गया तो हम स्थायी व मूल निवासी भी कहला पाएगें। लेखक का गाँव भी यही है,वह भी यहाँ मई 1959 से अक्टूबर 1961 तक रहा।इतने छोटी अवस्था व अल्प समय मेें जो भी याददाश्त रही व पूर्वजों ने बताया, ये उसी का प्रतिफल है जो इस लेख में पढ़ने को मिल रहा है।