
क्या सीएम धामी अपने बच्चों को “लिव इन” में रहने की इजाज़त देंगे ? : आशुतोष नेगी
इंद्रजीत असवाल
पहाड़ की बेटी अंकिता भण्डारी की लड़ाई को सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ने वाले यूकेडी के फायर ब्राण्ड नेता, आशुतोष नेगी अब पहाड़ की संस्कृति बचाने के लिये यूसीसी में “लिव इन कानून” के प्रावधान का सबसे ज्यादा मुखर रूप से विरोध कर रहे हैं।आशुतोष नेगी ने शुक्रवार को उत्तराखण्ड प्रेस क्लब देहरादून में आयोजित प्रेस वार्ता के माध्यम से मुख्यमंत्री धामी से कड़ा सवाल पूछा है कि बतायें “क्या आप अपने बच्चों की शादी करेंगे या फिर लिव इन में रहने की परमिशन देंगे “? उन्होंने कहा कि शायद मुख्यमंत्री धामी ने भी यूसीसी के वो बिंदु पढ़े ही नहीं हैं,जो देवभूमि की संस्कृति को ही नेस्तनाबूद कर देंगे!नेगी ने बताया कि ज़ब से उत्तराखण्ड में समान नागरिक संहिता लागू होने की बात हुयी है,तब से वो पहले व्यक्तियों में से हैं,जिन्होंने इस कानून के मूल निवासी विरोधी प्रावधानों का सबसे ज्यादा मुखर होकर विरोध किया है।नेगी ने आगे कहा कि,जब राज्य स्थापना दिवस 09 नवम्बर 2024 को इस काले कानून को उत्तराखण्ड पर थोपने की बात हुयी तो,उत्तराखण्ड क्रान्ति दल के स्व०नेता त्रिवेन्द्र सिंह पँवार ने इसका सबसे मुखर विरोध किया और 48 घंटे का उपवास रखा,उसके बाद सीएम धामी इसे प्रदेश में लागू करने से पीछे हट गये थे,लेकिन उसके कुछ दिन बाद संदिग्ध परिस्थितियों में सड़क दुर्घटना में स्व० त्रिवेन्द्र पँवार की मौत हो गयी।लेकिन 27 जनवरी 2025 को राज्य में यूसीसी लागू होने के बाद यूकेडी एक बार फिर मुखर रूप से इस कानून में “लिव इन रिलेशन” और “बाहरी राज्य के व्यक्ति को एक साल में ही प्रदेश का स्थायी निवासी” बनाये जाने के प्रावधानों का जबरदस्त विरोध कर रही है,जिसके लिये सबसे पहले उक्रान्द महिला मोर्चा की अध्यक्ष रि० मेजर संतोष भण्डारी के नेतृत्व में हस्ताक्षर अभियान चलाया गया,हालांकि पुलिस ने इस दौरान अलोकतांत्रिक ढंग से हस्ताक्षर अभियान चला रहे उक्रान्द नेताओं को हिरासत में ले लिया था।इसके बाद ऋषिकेश में भी एक व्यक्ति द्वारा गढ़वालियों को गाली देने और लिव इन कानून के विरोध में प्रदर्शन कर जुलूस निकाला गया और अब 10 फरवरी से 18 फरवरी तक,यूसीसी के मूल निवासी विरोधी प्रावधानों के ख़िलाफ़ नारसन,हरिद्वार से लेकर नीति,बद्रीनाथ तक यूकेडी युवा नेता राजेन्द्र बिष्ट के नेतृत्व में संस्कृति बचाओ हुँकार यात्रा निकाल रही है।नेगी ने कहा कि यूकेडी के यूसीसी के पुरज़ोर विरोध के बाद अब जनता ने भी यूसीसी के मूल निवासी विरोधी प्रावधानों की ख़िलाफ़त करना शुरू कर दिया है,यंहा तक कि खुद भाजपा के अनुषांगिक संगठनों,बजरंग दल और अन्य हिन्दूवादी संगठनों ने भी यूसीसी के लिव इन और एक साल में प्रदेश के बाहरी व्यक्ति को प्रदेश का स्थायी निवासी बनाये जाने पर कड़ी आपत्ति दर्ज करते हुये ऊँगली ख़डी करनी शुरू कर दी है।यूकेडी नेता आशुतोष नेगी ने प्रेस वार्ता के दौरान यह भी कहा कि उत्तराखंड में यूसीसी के “लिव इन” प्रावधान से प्रदेश में वैश्यावृति बढ़ेगी,उत्तराखण्ड में बाहरी लोगों को इन्वेस्टमेंट के नाम पर दिये गये बड़े-बड़े भूखंडों पर बने रिजॉर्टस,होम स्टे और होटल्स वैश्यावृति और जिगलु संस्कृति के अड्डे बनेंगे,क्योंकि “लिव इन” का कॉन्ट्रैक्ट कर राज्य में आयी देशी-विदेशी वैश्या या पुरुष जिगलु को कानून और पुलिस का संरक्षण प्राप्त होगा और ऐसे में इसका सामाजिक संगठनों द्वारा प्रभावी विरोध नहीं हो पायेगा।यूकेडी नेता आशुतोष नेगी ने सवाल उठाया कि अभी तक सैरोगेसी,यानि किराये की कोख़ में दूसरे दम्पति के भ्रूण को नौ माह तक रखना और फिर उस बच्चे को पैदा करने को कानूनी मान्यता नहीं थी,लेकिन लिव इन कानून के माध्यम से पहाड़ की गरीब लड़कियों का किराये की कोख के लिये या जैविक ढंग से संतति पैदा करने हेतु दुरुपयोग किया जा सकता है।उस प्रकार पैदा बच्चे उत्तराखण्ड के स्थायी निवासी तो बनेंगे ही,यंहा की भूमि और संपत्ति के हक़-हक़ूक़धारी भी होंगे।नेगी ने कहा कि यूसीसी के इन प्रावधानों से प्रदेश में मूल निवास और भू-कानून की माँग करना बेवकूफी गया और जनता को पहले यूसीसी के “लिव इन” और “एक साल में बाहरी प्रदेश के व्यक्ति को प्रदेश का स्थायी निवासी” बनाये जाने के प्रावधानों का मुखर विरोध करना चाहिये,जिससे मूल निवास और भू कानून की लड़ाई को यूसीसी के मूल निवासी विरोधी प्रावधानों के हटने के बाद दोबारा मजबूती से लड़ा और जीता जा सके।
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